कृष्ण और कर्ण वार्तालाप- जीवन की समस्याओं पर… A lesson from the life of karn in Hindi
एक बार महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा, “मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि,
द्रोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नहीं मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?
परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी साथ ये शाप भी दिया कि, मैं अपनी विद्या भूल जाऊँगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय समझते थे।
भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते में आकर मर गई और मुझे गौ वध का शाप मिला?
द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं समझा गया।
यहाँ तक कि, मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा।
मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला!
तो क्या ये गलत है कि, मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ…??
श्री कृष्ण मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले-
“कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था।
मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा।
तुम्हारा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट और तीर कमानों के साये में गुज़रा।
Krishna and Karn Conversation in Hindi
मैंने गायों को चराया और गोबर को उठाया।
जब मैं चल भी नहीं पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।
कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं, कोई गुरुकुल नहीं, कोई महल नहीं, मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।
जब तुम सब अपनी वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे उस समय मेरे पास शिक्षा भी नहीं थी। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला।
तुम्हें अपनी पसंद की लड़की से विवाह का अवसर मिला मुझे तो वो भी नहीं मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी।
मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था!
जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त में समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा।
यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हें भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला! मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझा।
हे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनौतियों से रहित नहीं है। सबके जीवन में सब कुछ ठीक नहीं होता। कुछ कमियाँ अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्टर में भी थीं।
सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं!
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है,
— इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कितनी बार हमारा अपमान होता है,
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।
फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि, हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं..!!!
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