मोबाइल फ़ोन और internet की दुनिया ने आज हमारी लाइफ स्टाइल को बदल कर रख दिया है। आज हम हर तरफ से मोबाइल internet से घिरे हुए हैं। Social Networking Sites ने तो मानो जैसे हमें अपने वश में कर लिया हो, खासकर युवा वर्ग के लोग तो 24 घंटों में से 16-16 घंटे तक इन साइट्स पर ऑनलाइन रहते हैं या फिर दिन-रात mobile phone पर लगे रहते हैं। (Mobile Benefits and Losses in Hindi)
चलते-चलते भी उनकी उंगलियाँ mobile phone पर ही काम करती रहती हैं। इतना होने पर mobile भी सोचता होगा कि, कमबख्त किस नामुराद के हाथों में आ गया।
कुछ यूँ कह लीजिए कि, mobile phone, computer फेसबुक और internet पर हमारी अलग ही दुनिया है। यह एक ऐसे लोगों की दुनिया है जिनसे कभी हम मिले ही नहीं हैं। दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला व्यक्ति हमारा दोस्त बन जाता है। जबकि हमको अपनी वास्तविक दुनिया के बारे में कुछ पता ही नहीं है।
Mobile Benefits and Losses in Hindi
हमारे पास इतना समय भी नहीं है कि, हम अपने आस-पास रहने वाले लोगों के सुख-दुख में शरीक हो सकें। लेकिन अगर हम अपने अन्दर झाँककर देखें और खुद के बारे में थोड़ा विश्लेषण करें तो हम पाएँगे कि, mobile, internet और सोशल साइट्स से घिरे होने के बाद भी हमारे जीवन में कहीं अकेलापन है जो धीरे-धीरे अन्दर ही अन्दर डिप्रेशन पैदा करता है।
शुरुआत में हमको इसका पता नहीं चलता परन्तु बाद में हम खुद को परेशानियों से घिरा पाते हैं उस समय हमारे फेसबुक के दोस्त काम नहीं आते। तब हमको इस अकेलेपन का अहसास होता है और यह डिप्रेशन एक सजा बन जाता है हमारे लिए। अब हम इन सबके बारे में थोड़ा विस्तार से पड़ेंगे…
आज का समय- Mobile Losses and Benefit in Hindi
आज का समय ऐसा है कि, युवा वर्ग में खुद को बिंदास दिखाने की होड़ मची हुई है। क्योंकि आजकल हर किसी के अन्दर खुद को दूसरों से अलग दिखने की जंग सी जारी है भले ही फेसबुक, whatsapp, twitter पर दोस्तों के नाम पर हमारी लम्बी friend लिस्ट हो लेकिन असल लाइफ में अकेलापन और डिप्रेशन फैला हुआ है।
जब तक हमारे फेसबुक स्टेटस पर likes और positive कमेंट्स नहीं मिलते हमें अच्छा नहीं लगता। अगर एक भी लाइक या positive कमेंट्स नहीं मिलता तो हम निराश हो जाते हैं और यह सोचने लग जाते हैं कि, उसके स्टेटस में तो इतने कमेंट्स और likes आते हैं पर मेरे क्यों नहीं?
हम लोग ऐसी बातों के बीच उलझे हुए हैं जिनकी हमारी लाइफ में कोई भी importance नहीं हैं। युवा ही नहीं 30 से 60 वर्ष के लोग भी इस पागलपन में पीछे नहीं हैं।
अभी हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि, राजधानी दिल्ली में ज्यादातर लोग डिप्रेशन के शिकार हुए हैं और महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। सोशल नेटवर्किंग के दोस्त भले ही चैटिंग करके हमारे दोस्त बन जाते हैं और कुछ समय के लिए हमारे अकेलेपन को दूर करते हैं लेकिन एक साथ बैठकर हँसना, बातें करना, एक-दूसरे की मदद करना जैसे अहसासों से बहुत दूर हैं।
नकारात्मक प्रभाव-
mobile phone, नेटवर्किंग साइट्स, फेसबुक, whatsapp आदि से दिन भर घिरे रहना हमारे लिए नुकसानदेह हैं। हमारी दिनचर्या के बहुत से कार्य अधूरे रह जाते हैं या फिर पेंडिंग रह जाते हैं और कभी-कभी तो हम उन कार्यों को थोड़ा करने के बाद भूल ही जाते हैं।
दुष्प्रभावों से बचें-
- जरुरत पड़ने पर ही ऑनलाइन आएँ।
- कोशिश करें कि, दोस्तों को किए गए message, message तक ही सीमित रहे, उसे घंटों की चैटिंग में ना बदलें।
- अपनी असल जिन्दगी के मित्रों, बुजुर्गों, परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताएँ।
- अपनी फेसबुक likes को देखकर tension ना लें चैट करते समय अगर कोई आपको नापसंद आने वाली बात कहता है तो उसको महत्त्व ना दें ऐसी बातों को ignore करें।
- अपने जरुरी कार्यों को importance दें।
- रास्ते में, सड़क पर चलते समय mobile का इस्तेमाल जरुरत पड़ने पर ही करें।
This article has been written by Maahi sharma
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