Holi special story in Hindi – बुरा न मानो होली है

Holi special story in Hindi – बुरा न मानो होली है
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Holi special story in Hindi - बुरा न मानें होली हैHoli special story in Hindi – बुरा न मानो होली है…

होली की पूर्व संध्या…

आज मेरे घर के बाहर से ही कई पकवानों की खुश्‍बू आ रही है। इसका एक मुख्य कारण भी है कि, कल बड़ी होली और आज छोटी होली की संध्‍या थी। हमारे मोहल्‍ले के कई घरों में कई तरह के व्‍यंजन और पकवानों को होली के त्यौहार के लिए जल्‍दी-जल्‍दी तैयार करने की होड़ लगी हुई थी। शाम के चार बज रहे थे। मैं अपने स्‍कूल से जल्‍दी आ गई थी। इसी कारणवश कि किचन में अपने सास और दादी का हाथ बटाऊँगी। मेरा घर बच्‍चों के शोरगुल और हल्‍ला-हल से गूँज रहा था। मेरे सिर्फ दो बच्‍चे हैं लेकिन मेरे अन्‍य रिश्‍तेदारों के घर में आने से घर किसी क्रिकेट या फुटबाल मैदान से कम नहीं लग रहा था।

मैं घर के अंदर दाखिल हुई तो देखा कि किचन में बच्‍चों का झुंड खड़ा हुआ था। मेरी ननद का बेटा आशु बोला – ‘दादी मॉं, दादी मॉं… हमें भी थोड़ा मालपुआ दो ना।’ और किचन से दादी मॉं की आवाज आई – ‘सब पकवान मैं तुम्‍हीं लोगों के लिए ही तो बना रही हूँ। कल भगवान को भोग चढ़ाने के बाद सबको मिलेगा। अब तुम सब जाओ और खेलो।’

बच्‍चे उदास हो चले थे। उन नन्हें—मुन्‍नों को भोग से सरोकार नहीं, उन्‍हें तो बस मिठाई खाना है और विभिन्‍न पकवानों का आनन्‍द लेने से मतलब था। मैं उन बच्‍चों को किचन से बाहर मुँह बनाते हुए देख रही थी। मैं किचन में दाखिल हुई तो सासु माँ मुझे देखकर खुश हुई।

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सासु मॉं – आओ अनुराधा, ठीक समय पर आ गई हो। तुम्‍हारा ही इंतज़ार था। सब पकवान बन गए, बस थोड़ी—सी गुजिया रह गई। तुम फिलहाल दादी माॅं और मेरे लिए थोड़ी चाय बना देना और देख लो कि गुजिया के मिश्रण में कोई कमी तो नहीं है?

अनुराधा – अरे! दादी मॉं, आप कैसे गलती कर सकती हैं? सब ठीक ही होगा और दादा जी को कल पूरी होली में सिवाए एक गुजिया से अधिक कुछ न देना और ना ही किसी को देने देना। इनकी डाईबटीज दूसरे स्‍टेज पर है और जनाब की चोरी करके मिठाई खाने की आदत अभी तक नहीं गई। परेशान करके रखा है घरवालों को।

अब परेशान कौन होने वाला था, इसका भी पता चल गया था कुछ ही देर में। दादा जी भूल गए थे कि, आज छोटी होली है। बेचारे नहा-धोकर अभी अपना सफेद कुर्ता पहन कर अपने आँगन में बैठे ही थे कि छपाक! छपाक! दो गुब्‍बारे हवा में उडे़ और उनका मासूम सफेद कुर्ता गुलाबी और हरे रंगों के आगे शहीद हो गया। दादा जी की ऑंखों में क्रोध था ही लेकिन वो अपने आप पर काबू करके बोले – क्‍यों भई आशु! कम से कम उम्र का तो लिहाज करो। अपने साथियों के साथ जाके होली खेलो।

इस पर आशु व्‍यंग कसता हुआ बोला – ‘दादा जी मम्‍मी ने कहा है कि, कोई भी शुभ काम करना तो बड़े—बुजुर्गों से करना।’

Holi special story in Hindi - बुरा न मानें होली हैइस पर दादाजी के क्रोध का पारा और भी चढ़ गया और इधर सभी बच्‍चों ने जोर का नारा लगाया – बुरा ना मानो होली है। दादाजी कुछ न बोले और चुपके से दूसरे कमरे में चले गए। उनका इरादा बिल्‍कुल भी दूसरा कुर्ता बदलने और उसको भी रंगों के आगे बलिदान करने का नहीं था। मैं मंद-मंद मुस्‍कुराई और यह सब देख और दोबारा किचन में जा घुसी। दादा जी के भाषणों का तीर चले और फिर उनकी बातों को सुनने का मेरा मूड बिल्‍कुल नहीं था।

होली का दिन…

अगले दिन आया रंगों का त्‍यौहार होली। सभी बच्‍चे गलियों में भाग और छिप रहे थे। कोई किसी को पीले रंगों से रंग रहा था, तो कोई गुलाबी रंगों से चेहरों को गुलाबी कर रहा था। मनचले अपनी प्रेमिकाओं को रंगों से सजा रहे थे, तो आंटियों का झुंड अंकलों पर रंगों का कहर बरसा रहा था। मैं अपनी छत पर खड़ी सबको देख ही रही थी कि, मुझे लगा कि मेरा कंधा भीग रहा है और मेरी साड़ी अचानक ही पानी-पानी हो रही थी। मेरे गीले होने के पीछे कोई और नहीं मेरे पति अरुण ही थे, जिन्‍होंने बच्‍चों के साथ मिलकर मेरे ​​सिर पर रंगों से भरी बाल्‍टी उड़ेल दी थी। इस शैतानी षडयंत्र के पीछे भी दादाजी का ही हाथ था जो नीचे खड़े समोसे को एक हाथ में लिए मुस्‍कुरा रहे थे।

कुछ देर के लिए तो दादाजी पर गुस्‍सा आया मुझे मगर बाद में नजरअंदाज कर दिया कि, होली पर सबको होली खेलने का अधिकार है। मैंने अपनी साड़ी बदली और एक चूड़ीदार पहन लिया था। अपनी छत से देखा कि, कुछ व्‍यस्‍कों का झुंड मेरी कॉलोनी से होकर गुजर रहा था। सभी का चेहरा न पहचानने वाली स्थिति में ही था। किसी के हाथों में रंगों से भरी पिचकारी थी, जिसके नोक पर रंगों से भरा पानी टिप-टिप करके रिस रहा था, मानों तैयार था किसी पर भी हमले के लिए। इस झुंड में जहाँ बच्‍चे झूम रहे थे अपने नन्‍हें हाथों में रंग-बिरंगे पानी के गुब्‍बारे और प्लास्टिक की पानी भरी बंदूक के साथ, वहीं दूसरी तरफ बुज़ुर्ग वर्ग को देखा जो इस त्यौहार के हर्षोल्‍लास से भरपूर थे और वो अपने पुराने दोस्तों को किस तरह चुटकी भर रंगों से रंग रहे थे। उन्‍हें जैसे इस चुटकी भर रंग से ही सम्पूर्ण होली का आनंद मिल रहा था।

कुछ देर बाद छत पर मैं अकेली खड़ी थी और तभी मेरी सासु मॉं आ पहुंचीं। उनकी साड़ी का रंग अब तक होली के अनगिनत रंगों में रंग गया था।

मैंने पूछा अपनी सास से – साड़ी तो बदल लेतीं सासु मॉं देखिए कितनी भीग गई हैं आप।
सासु मॉं – बस करो अनुराधा। आज ये मेरी तीसरी साड़ी है। जो बदलकर तुम्‍हारे सामने खड़ी हूँ। इन बच्‍चों और तुम्‍हारे पति और उनके दोस्‍तों ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा – बस होली के सारे रंग जैसे मुझ पर पर ही फैंके जा रहे हैं ये सब।

अनुराधा – जाने भी दो ना सासु मॉं आज तो होली है। वो भी बुरा ना मानो होली है। उन नादानों को अब माफ भी कर दो।
सासु मॉं – अरे! नादान! अब 60 साल का नादान कौन होता है ये तो बताओ?
अनुराधा – मतलब?
सासु मॉं – तुम्‍हारे दादाजी भी कम नहीं हैं अपनी शैतानी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं इस बुढ़ापे में भी। शायद बदला ले रहे हैं कि हम उन्‍हें मिठाई नहीं देते खाने को।

अनुराधा – हो सकता है कि आप सत्‍य कह रही हो। हा… हा… और मेरे हँसने से सासु मॉं को भी हँसी आ गई।

पड़ोसियों की होली…

कुछ देर हम दोनों छत पर ही रहे। अचानक हम दोनों की नजर निचले माले के चौथे मकान पर गई। ये कोई ओर नहीं शर्मा जी थे जो इस वक्‍त दुनिया की ऑंखों से बच-बचाके अपनी पत्‍नी के उपर रंग डाल रहे थे। उनके गोरे गालों पर रंग लगा रहे थे और वो भी स्‍लो-मोशन में। दोनों शर्मा बंधु ऐसे शर्मा रहे थे जैसे दसवीं कक्षा के छात्र प्रेम रस में डूबने से पहले शर्माते हों। मेरी हँसी छूट रही थी और शरीर अलग टूट रहा था। इतने में सासु मॉं जोर से चिल्‍लाई कि, आवाज शर्मा जी के कानों में भी पड़ी – अरे शर्मा! इतने धीरे से रंगों को ना घिसो बीवी के गाल घिस जाएँगे, ये बात सुन कॉलोनी के अन्‍य लोग भी जोर—जोर से हँसने लगे।

होली का त्‍यौहार है ही ऐसा। जहाँ कई अनसुलझे रिश्‍ते प्रेम सूत्र में बंध जाते हैं। ये होली का त्यौहार जितने रंग लेकर आता है, उतने ही प्रेम बंधन भी। कई लोग अपनी पुरानी से पुरानी रंजिश को भुलाकर अपने जीवन के एक नए अध्‍याय की शुरूआत करते हैं।

शर्मा जी को देख मैं खुद भावुक हो चली थी। मेरे पति प्राय: बच्‍चों के बीच रहते हैं इसका मतलब ये नहीं कि वो मुझे प्‍यार नहीं करते। वो अपनी जिम्‍मेदारियों को खूब निभाते हैं। फिलहाल मेरा घर अभी मेरे पति के दोस्‍तों और मेरे रिश्‍तेदारों से भरा हुआ था। कोई समोसे पर ध्‍यान लगा रहा था तो कोई गुजिया का ही आनन्‍द ले रहा था। टीवी भी चल रहा था जिस पर थके हुए बच्‍चे कार्टून का लुफ्त उठा रहे थे।

भाँग का असर…

मैं अपने किचन में आ गई थी और पीने के लिए ठंडी लस्‍सी ढूँढ रही थी। फ्रिज में देखा तो सिवाए तरकारी के वहाँ कुछ नहीं था। सब खत्‍म। कोई जूस तक नहीं, कोई लस्‍सी नहीं। फिर मैंने केवल पानी पीकर खुद को संतुष्‍ट कर लिया। अभी किचन से बाहर जाने ही वाली थी कि मेरे पति दौड़ते हुए आए और बोले – थोड़ा सा चाय तो बना दो भागवान, बस 4 कप। चाय बनाके मैं बाहर 4 कप ले आई। बाहर आकर वहाँ देखा कि दादाजी इधर से उधर झूल रहे थे या यह कहें वो अपने संतुलन में नहीं थे। बार-बार छत पर जाकर तेज़ चिल्‍लाते या मोटरसाइकिल पर बैठ जाते लेकिन बिना स्‍टार्ट किए ही उसे चलाने का नाटक करते। ऊपर से किसी ने दादाजी को काला चश्‍मा और पहना दिया।

भांग का असर इस कदर कि, दादाजी ऋषि कपूर से लेकर सलमान खान तक के गाने गाते और बीच-बीच में बाईक चलाने का खूब नाटक कर रहे थे। कहीं से आवाज़ आई – चाचाजी पर जवानी चढ़ रही है। कुछ देर के लिए तो ये सभी हीरों को मात दे दें।

बाद में किसी ने बताया कि, मेरे पति के ऑफिस दोस्‍तों में से किसी ने उन्‍हें भांग की गोली समोसे में रख के खिला दी थी। इस मजाक की भरपाई मेरे पति को उठानी पडी। मॉं और सासु मॉं से मेरे पति ने अच्छे से डांट खाई थी। ‘दामाद जी। कुछ तो लिहाज कीजिए उम्र का, ऊपर से दादाजी डाईबटीज के मरीज भी। कम से कम अपने दोस्‍तों को तो रोक लेते।’ मेरे पति कुछ न बोले और चुप-चाप अपनी गलती का एहसास करते हुए बाहर बगीचे की ओर चले गए।

अभावों की होली…

दोपहर के 12 बज गए थे। अभी आधी होली बची हुई थी। घर पर सभी लोग थके हुए आराम कर रहे थे। लेकिन मैं ही नहीं सो पा रही थी। मुझे अक्‍सर दिन में नींद नहीं आती। मैं खिड़की की ओर जाकर बैठ गई। मैंने देखा कि एक छोटी सी बच्‍ची अपने पिता की गोदी में जोर-जोर से चिल्‍ला रही थी – ‘होली है होली है, आज मेरे बाबा नई पिचकारी और लाल वाली गुड़िया लाएँगे।’ उसका बाबा कोई ओर नहीं हमारी कॉलोनी का आईरन-मैन, यानि हम कॉलोनी वालों के सभी कपड़ों को इस्‍त्री करने वाला था।

बच्‍चे को जन्‍म देते वक्‍त, उसकी पत्‍नी एक साल पहले ही चल बसी थी। उसकी बेटी प्रिया काफी चंचल है और 7 साल उम्र होने के बावजूद भी अपने बाबा का काम में हाथ बँटाती थी। उसके नन्‍हें हाथों में मैं कभी-कभी भारी भरकम लोहे का इस्‍त्री बॉक्‍स देखा करती थी। इस नन्‍हीं-सी जान का वर्तमान इतना कष्‍टदायी है, तो भविष्‍य कैसा होगा? यह हमेशा सोचती थी।

आज जब मेरे घर पर इतने पकवान बने और मनपसंद खाना बना है। मेरे बच्‍चे जहाँ अच्छे रहन-सहन में जी रहे थे, वहीं ये नन्‍हीं प्रिया अपने बाबा जी को अपना संसार समझ रही थी। उसको कीमती खिलौनों से कोई मतलब नहीं था। उसे तो वो लाल गुड़िया और चीनी की मिठाई मिल जाए वही उसका सर्वानंद की अनुभूति थी। उसके लिए तो बाबा जी ही सबकुछ हैं।

मैं अपनी कुर्सी से उठी और मैंने अपने लिए जो मालपुए बचाके और छुपाके रखे थी उसे एक छोटी—सी डिबिया में डाला और अपने घर से बाहर नीचे आ गई। कॉलोनी के हमारे बेसमेंट में ही हरिया की इस्‍त्री करने की छोटी दुकान है। कॉलोनी के सभी लोग उसके व्‍यवहार और उसके काम को पसंद करते थे। उसके अच्‍छे आचरण को देखकर ही कॉलोनी वालों ने उसे एक छोटे इस्‍त्री की दुकान खोलने की अनुमति दे दी थी। लेकिन त्‍यौहार के दिन सोसाइटी के लोग उसे पूछते तक नहीं थे।

मैंने देखा हरिया अपनी दुकान में बैठा बीड़ी पी रहा था और वहीं नन्‍हीं प्रिया जले हुए कोयलों के टुकड़ों से खेल रही थी। वो विवश थी। कुछ देर के लिए चिल्‍लाई जरूर अपनी माँग को लेकर, लेकिन बाद में चुप हो गई। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस अबोध उम्र में भी अपने बाबा जी के हालातों से वाकिफ़ थी। मुझे देख हरिया उठ खड़ा हुआ। मुझे हाथ जोड़कर नमस्‍कार किया। अपने साथ लाई मालपुओं के डिब्‍बे को उसके हाथ में थमाया और नीचे बैठी नन्‍हीं प्रिया के पास जा बैठी। उसने मुझे एक मासूम मुस्‍कान के साथ देखा। मैंने उसके मुस्‍कुराहट का जवाब एक मुस्‍कान से दिया। उसके नन्‍हें हाथों में मैंने एक लाल गुड़िया रख दी जिसे मैंने अपनी बेटी सिमी के लिए लिया था। अपने बेटी के लिए मैं दोबारा ला दूँगी। अपने आँचल में छिपा कर लाई एक रंगीन पिचकारी भी नन्‍हीं प्रिया को दे दी। हरिया की ऑंखों में आँसू आ गए और नन्‍हीं प्रिया की ऑंखों में खुशी थी।

मैं हरिया के निकट गई और बोली – ‘कल से तुम्‍हारी बेटी तुम्‍हारे साथ काम नहीं करेगी। कल से ये मेरे साथ स्‍कूल जाएगी। एक अध्‍यापिका होने के कारण इस नन्‍हीं का भविष्‍य खराब होते मैं नहीं देख सकती।’

मेरे इतना कहते ही हरिया बोला -‘आपका कहा मेरे लिए आज्ञा है मैडम साहिबा।‘
मैं वहाँ से चली आई। वहाँ से घर को लौटते समय, मेरे पीछे नन्‍हीं प्रिया मुझे देखती रही।

इस होली के दिन उस नन्‍ही बच्ची को एक मॉं के प्‍यार की अनुभूति हुई थी।

Holi special story in Hindi - बुरा न मानें होली है
Written by – Shikha jha

 

City – Patna, Bihar

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3 responses to “Holi special story in Hindi – बुरा न मानो होली है”

  1. Pooja Avatar
  2. Amit Kumar Jha Avatar
    Amit Kumar Jha

    अद्भुत लेखन❣️❣️

  3. Deepali Mishra Avatar
    Deepali Mishra

    Wonderful heart touching story ❤ ♥ 💖 💓

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